वट सावित्री गीत - सतीत्व का बल
वटवृक्ष की छाँव तले, सावित्री ने व्रत रखा,
सत्य, सतीत्व, प्रेम का, दीप मन में जगमग रखा।
पति हेतु संकल्प लिया, जीवन को अर्पण किया,
मृत्यु से भी भिड़ गई, नारी ने यम को हर लिया।
संकल्प की शक्ति से, कालचक्र रुक जाए,
सती के तप में ऐसा तेज, विधि भी शीश नवाए।
आँचल में विश्वास लिए, चरणों में धैर्य समाए,
सावित्री के व्रत से ही, सौभाग्य फिर लौट आए।
वटवृक्ष साक्षी बन गया, अमर प्रेम की बातों का,
नव जीवन का संग मिला, व्रत की पावन रातों का।
श्रद्धा की वो मिसाल बनी, युगों-युगों तक गाई जाए,
नारी के साहस, सतीत्व को, धरती भी शरण में आए।
व्रत नहीं ये साधारण, तप है अनंत प्रतीक्षा का,
सावित्री के व्रत से ही, मार्ग खुला आशा का।
यमराज भी हारे जहाँ, प्रेम की उस पूजा से,
नारी ने फिर जीवन पाया, अपने अद्भुत व्रता से।
पावन व्रत यह प्रेरणा है, हर नारी के मन की,
निष्ठा, तप, और त्याग की, वो प्रतिमा है जन-जन की।
सावित्री का यह पूजन, शक्ति का आह्वान करे,
हर वर्ष वट सावित्री, सतीत्व का गुणगान करे।