shani jayanti parva vidhi aur mahatva

शनि जयंती पर्व विधि और महत्त्व

शनि जयंती भगवान शनिदेव को समर्पित प्रमुख पर्व है, जो हर साल ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि को मनाई जाती है. शनि जयंती का महत्व केवल धार्मिक पूजा तक सीमित नहीं है, यह त्योहार हमें अपने जीवन में कुछ महत्वपूर्ण सबक तो सिखाता ही हैं, साथ ही ये हमारी संस्कृति और समाज के महत्वपूर्ण पहलुओं को भी प्रतिबिंबित करते हैं. शनि जयंती हमें न्याय, कर्म और सत्य का महत्व बताता है. 

अगर व्यक्ति इन त्योहारों के मूल्यों को अपने जीवन में अपनाते हैं, तो वह न केवल अपने परिवार और समाज के प्रति अधिक जिम्मेदार बनेंगे, बल्कि अपने जीवन को भी बेहतर बना सकेंगे.

शनिदेव और शनि जयंती -

शनि देव हिन्दू धर्म में पूजे जाने वाले प्रमुख देवताओं में से एक हैं. ​धर्म और ज्योतिष दोनों की दृष्टि से शनिदेव का महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है. शनिदेव का नाम आते ही कुछ लोगों को भय लगने लगता है, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं है. शनिदेव केवल बुरे कर्म करने वालों, धर्म विरूद्ध कार्य करने वाले को ही दंड देने के लिए उनकी कुंडली में बैठ जाते. लेकिन यदि शनिदेव किसी पर प्रसन्न हो जाये तो उनके जीवन में किसी चीज का अभाव भी नहीं रहता है. 

शनि से जुड़े दोषों व पापों से मुक्ति पाने के लिए शनिदेव की पूजा की जाती है. शनिदेव नीतिगत न्याय करते हैं, कहा जाता हैं शनि वक्री जनैः पीड़ा अर्थात शनि के वक्री होने से लोगों को पीड़ा होती है. इसीलिए शनि की दशा से पीड़ित लोगों को शनि जयंती के दिन उनकी पूजा अराधना करनी चाहिए, इससे उन्हें सुख प्राप्त होगा. साथ ही पूरे साल हर शनिवार के दिन सुबह पीपल के पेड़ पर जल चढ़ाने और सांय के समय सरसों के तेल का दिया जलाने से प्रसन्न किया जा सकता हैं. 

शनिदेव न्याय के देवता हैं, योगी, तपस्या में लीन और हमेशा दूसरों की सहायता करने वाले होते हैं. शनि ग्रह को न्याय का देवता कहा जाता है यह जीवों को सभी कर्मों का फल प्रदान करते हैं. शनिवार को सुंदरकांड या हनुमान चालीसा का पाठ करके इसके साथ ही इस दिन शनि चालीसा का पाठ विशेष फल प्रदान कराता हैं. शनिदेव का नाम या स्वरूप ध्यान में आते ही मनुष्य भयभीत अवश्य होता है लेकिन, कष्टतम समय में जब शनिदेव से प्रार्थना कर उनका स्मरण करते हैं तो वे ही शनिदेव कष्टों से मुक्ति का मार्ग भी प्रशस्त करते हैं. 

भारतीय विक्रमी सम्वत पंचांग के ज्येष्ठ महीने का एक महत्वपूर्ण त्योहार शनि जयंती है, जो हर साल अमावस्या तिथि के दिन मनाया जाता है. यह दिन शनिदेव का जन्मदिन है, जो शनि ग्रह के देवता और न्याय के देवता माने जाते हैं. क्योंकि शन‍ि जयंती के ही दिन भगवान शन‍िदेव का जन्‍म हुआ था. इसीलिए इस दिन शनि जयंती मनाई जाती है. 

ऐसी मान्यता है कि शनि जयंती के दिन अगर कोई भी व्यक्ति सच्ची श्रद्धा से भगवान शनिदेव की पूजा उपासना करता है तो उसे शनि देव का आशीर्वाद प्राप्त होता है और उस पर उनकी कृपा भी बनी रहती है.

शनिदेव की पूजा भी अन्य देवी-देवताओं की तरह ही होती है, शनि जयंती के दिन उपवास भी रखा जाता है. शनिदेव की पूजा में स्वच्छता का विशेष ध्यान रखना चाहिए. शनि जयंती पर मंदिर में जाकर शनिदेव को चरणों के दर्शन करें. इस दौरान भूलकर भी शनिदेव की आंखों में आंख नही मिलानी चाहिए. 

शनि जयंती के दिन शनिदेव के निमित्त विधि-विधान से पूजा पाठ तथा व्रत किया जाता है. शनि जयंती के दिन किया गया दान पुण्य एवं पूजा पाठ शनि से सम्बंधित सभी कष्ट दूर कर देने में सहायक होता है. 

शनि जयंती के दिन शनि देव की विशेष पूजा का भी विधान होता है, जिसमें शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए अनेक मंत्रों व स्तोत्रों का गुणगान किया जाता है. शनि हिन्दू ज्योतिष में नौ मुख्य ग्रहों में से एक हैं, शनि अन्य ग्रहों की तुलना में धीमे चलते हैं इसलिए इन्हें शनैश्चर भी कहा जाता है. पौराणिक कथाओं में शनिदेव  के जन्म के विषय में काफ़ी कुछ बताया गया है.

ज्योतिष में शनि ग्रह के प्रभाव काफी महत्वपूर्ण है, जिसमें शनि ग्रह वायु तत्व और पश्चिम दिशा के स्वामी हैं. शास्त्रों के अनुसार, शनि जयंती पर उनकी पूजा-आराधना और अनुष्ठान करने से शनिदेव अपने भक्तों को विशिष्ट फल प्रदान करते हैं. शनि जयंती के शुभ अवसर पर इस तरह से पूजा करें तो निश्चित ही आपको लाभ होगा. 

शनि जयंती की पूजा विधि और अनुष्ठान -

शनिदेव के निमित्त पूजा करने हेतु भक्त को चाहिए कि वह शनि जयंती के दिन सुबह जल्दी उठकर नित्य कर्म करने के बाद नाहा धो लें. फिर नवग्रहों को नमस्कार करें. इसके पश्चात लकड़ी के एक पाट पर साफ-सुथरे काले रंग के कपड़े को बिछाना चाहिये कपड़ा नया हो तो बहुत अच्छा. इसके बाद शनि देव की लोहे की मूर्ति रखें, यदि प्रतिमा या तस्वीर न भी हो तो एक सुपारी ले. फिर इस स्वरूप को पंचगव्य, पंचामृत, इत्र आदि से स्नान करवायें और शुद्ध घी व तेल का दीपक व धूप जलाये. शनिदेव की मूर्ति का अभिषेक सरसों के तेल से करें. तेल, सिंदूर, कुमकुम, काजल, अबीर, गुलाल आदि के साथ-साथ नीले या काले फूल शनिदेव को अर्पित करें. 

बेसन के लड्डू का शनिदेव को भोग लगाना चाहिए, इमरती व तेल से बने पदार्थ अर्पित करें. श्री फल के साथ-साथ अन्य फल भी अर्पित कर सकते हैं. पंचोपचार व पूजन की इस प्रक्रिया के बाद शनि मंत्र की एक माला का जाप करें, माला जाप के बाद शनि चालीसा का पाठ करें, शनिदेव की आरती उतार कर पूजा संपन्न करें. शनि देव को प्रसन्न करने के लिए हनुमान जी की पूजा भी करें. शनि जी की कृपा पाने के लिये, शांति प्राप्ति हेतु तिल, उड़द, काली मिर्च, मूंगफली का तेल, लौंग, तेजपत्ता तथा काला नमक पूजा में उपयोग कर सकते हैं. 

इस दिन दान करना भी शुभ माना जाता है. शनिदेव से संबंधित वस्तुओं का दान करें. दान करते समय ॐ प्रां प्रीं प्रौं स: शनैश्चराय नम: मंत्र बोलें. इस दिन दान में देने के लिये काले कपड़े, जामुन, काली उडद, काली मिर्च, आचार, काले जूते, तिल, लोहा, तेल, आदि चीजें चुनें. शनि जयंती पर शनि मंदिर में तेल के दीये जलाए जाते हैं. शनिदेव को भोजन अर्पित करने के बाद, गरीब और जरूरतमंद लोगों को वस्त्र, तेल, तिल और भोजन आदि देना शनि जयंती का प्रमुख भाग माना जाता है. इसके अलावा, काले कुत्तों और काली गायों को भी भोजन खिलाया जाता है. कई शनिदेव भक्त इस दिन अपने घरों या शनि मंदिरों में एक पवित्र अग्नि हवन का भी आयोजन करते हैं और शनि महात्म्य का पाठ भी करते हैं.

इस प्रकार पूजन के बाद दिन भर कुछ न खाएं और मंत्र का जप करते रहें. इस दिन सावधानीपूर्वक कार्य करना चाहिए और बुरे विचारों से दूर रहना बहुत महत्वपूर्ण है.

वैसे तो शनिदेव महाराज को काली वस्तुएं पसंद होती है, जैसे काले तिल, काले उड़द की दाल आदि का भोग तो उन्हें लगाया ही जाता है, पर शायद यह बहुत कम लोग जानते होंगे कि शनिदेव को सबसे ज्यादा मीठी पूड़ी और काले उड़द की दाल से बनी खिचड़ी का भोग पसंद होता है. इस भोग से शनिदेव शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं. इसलिए शनि जयंती के दिन विधि विधान से शनिदेव का पूजन करने के बाद पलाश या केले के पत्ते पर उनका यह पसंदीदा भोग लगाना चाहिए. 

शनि जयंती के दिन प्रमुख शनि मंदिरों में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है. भारत में स्थित प्रमुख शनि मंदिरों में भक्त शनिदेव से जुड़े पूजा पाठ अनुष्ठान करते हैं तथा शनि पीड़ा से मुक्ति की और उनकी कृपा पाने के लिए प्रार्थना करते हैं. शनिदेव को काला या कृष्ण वर्ण का बताया जाता है इसलिए इन्हें काला रंग अधिक प्रिय है. शनि देव काले वस्त्रों में ही सुशोभित हैं.चूँकि शनिदेव का जन्म ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि के दिन हुआ है, तो जन्म के समय से ही शनिदेव श्याम वर्ण, लंबे शरीर, बड़ी आंखों वाले और लम्बे केशों वाले थे.

अगर कोई भक्त शनि देव को शीघ्र प्रसन्न् करना चाहते है और अपने जीवन की सभी समस्याओं से छूटकारा पाना चाहते हैं तो उन्हें शनि जयंती या शनि अमावस्या के दिन सुबह 10 बजे से पहले और शाम को 6 से 7 बजे के बीच मीठी पूड़ी या काले उड़द की दाल की खिचड़ी का भोग जरूर लगाना चाहिए. ऐसा करने वाले व्यक्ति से शनिदेव प्रसन्न होकर उसकी साढ़ेसाती, ढैया या महादशा-अंतर्दशा के कष्टमय प्रभावों को कम या खत्म कर देते हैं. साथ ही शनिदेव उसकी अनेक मनोकामनाएं भी पूरी कर देते हैं.

शनिदेव महाराज की जयंती पर शनिदेव के निमित्त उनके बीज मंत्र, पूजा पाठ, ध्यान और दान आदि करने का कई गुणा फल व्यक्ति को प्राप्त होता है. 

शनि ग्रह का ज्योतिषीय दृष्टिकोण -

शनि देव को समस्त ग्रहों में सबसे शक्तिशाली ग्रह माना गया है, शनिदेव के शीश पर अमूल्य मणियों से बना मुकुट सुशोभित है. शनिदेव के हाथ में चमत्कारिक यन्त्र है, शनिदेव न्यायप्रिय और भक्तों को अभय दान देने वाले देव माने जाते है. शनिदेव प्रसन्न हो जाएं तो रंक को राजा और क्रोधित हो जाएं तो राजा को रंक भी बनाने मे तनिक भी देरी नहीं लगाते है. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शनि का फल व्यक्ति की जन्म कुंडली के उनके बलवान और निर्बल होने पर तय होता हैं, और पता चलता कि जातक को क्या क्या शुभता देंगे अथवा शनि के दुष प्रभावों से बचने के लिये उसे क्या क्या उपाय करने चाहिये. शनि पक्षरहित होकर न्याय करते है अगर पाप कर्म की सजा देते हैं तो उत्तम कर्म करने वाले मनुष्य को हर प्रकार की सुख सुविधा एवं वैभव भी प्रदान करते हैं.

शनिदेव की जो भक्तिपूर्वक व्रतोपासना करते हैं वह पाप की ओर जाने से बच जाते हैं जिससे शनि की दशा आने पर उन्हें कष्ट नहीं भोगना पड़ता है. शनिदेव की पूजा के पश्चात् उनसे अपने अपराधों एवं जाने अनजाने जो भी आपसे पाप कर्म हुआ हो उसके लिए माफ़ी मांगते हुए क्षमा याचना करनी चाहिए. शनिदेव  महाराज की पूजा के पश्चात् राहु और केतु की पूजा भी करनी चाहिए. शनि जयंती के दिन शनि भक्तों को पीपल में जल देना चाहिए और पीपल में सूत्र बांधकर सात बार परिक्रमा करनी चाहिए. शनिवार के दिन भक्तों को शनि महाराज के नाम से व्रत भी रखना चाहिए. 

शनिदेव का प्रभाव और उनके जन्म की कथा -

शनिदेव को अक्सर एक सख्त देवता के रूप में देखा जाता है, जो अपने भक्तों को उनके कर्मों के आधार पर फल देते हुए न्याय करते हैं. लेकिन यह भी सच है कि अगर किसी ने अच्छे कर्म किए हैं, तो शनिदेव उन्हें वरदान और सफलता प्रदान करते हैं. इसीलिए, शनि देव की पूजा और उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए, व्यक्ति को सच्चे मन से पूजा करनी चाहिए और अपने जीवन में अच्छे कर्म करने चाहिए.

भगवान शनिदेव के जन्म के बारे में स्कंदपुराण के काशीखंड में एक कथा मिलती है कि राजा दक्ष की कन्या संज्ञा का विवाह सूर्यदेव के साथ हुआ था. सूर्यदेव का तेज बहुत अधिक था, जिसे लेकर संज्ञा काफी परेशान रहती थी. वह सूर्य की अग्नि को कम करना चाहती थीं. विवाह के कुछ समय बाद संज्ञा और सूर्य के तीन संताने हुई, वैवस्वत मनु, यमराज और यमुना. 

इस प्रकार कुछ समय तो संज्ञा ने सूर्य के साथ निर्वाह किया परंतु संज्ञा सूर्य के तेज को अधिक समय तक सहन नहीं कर पाईं. उनके लिए सूर्य का तेज सहन कर पाना मुश्किल होता जा रहा था. संतान होने के बाद भी संज्ञा सूर्यदेव के तेज को कम करने का उपाय सोचती रहती थी, इसलिए उन्होनें एक दिन अपनी हमशक्ल, अपनी छाया को बनाया और उसका नाम सवर्णा रखा. संज्ञा ने अपने बच्चों और सूर्यदेव की जिम्मेदारी संवर्णा को सौंपकर, सूर्य की सेवा में छोड़कर वहां से जाने का निर्णय लिया. वहां से वह खुद अपने पिता के घर चली गई. जहां उनके पिता ने संज्ञा वापस भेज दिया, लेकिन वह एक जंगल में जाकर घोड़ी का रुप लेकर तपस्या में लीन हो गई.

सूर्यदेव को कभी संवर्णा पर शक नहीं हुआ क्योंकि वो संज्ञा की छाया ही थी. संवर्णा

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