rana sanga ka jeevan parichay

राणा सांगा का जीवन परिचय

राणा सांगा का नाम महाराणा संग्राम सिंह था. राणा सांगा का जन्म 12 अप्रैल 1484 को हुआ था. वह उदयपुर में सिसोदिया राजपूत राजवंश के राजा थे तथा राणा रायमल के सबसे छोटे पुत्र थे.

राणा सांगा ने सभी राजपूत राज्यो को संगठित किया और सभी राजपूत राज्यों को एक छत्र के नीचे लाएं. उन्होंने सभी राजपूत राज्यो से संधि की और इस प्रकार महाराणा सांगा ने अपना साम्राज्य उत्तर में पंजाब सतलुज नदी से लेकर दक्षिण में मालवा को जीतकर नर्मदा नदी तक कर दिया. पश्चिम में में सिंधु नदी से लेकर पूर्व में बयाना भरतपुर ग्वालियर तक राणा सांगा ने अपने राज्य का विस्तार किया था. 

इस प्रकार मुस्लिम सुल्तानों की लगभग डेढ़ सौ वर्ष की सत्ता के बाद अपने खोये हुए इतने बड़े क्षेत्रफल को हिंदू साम्राज्य के रूप में फिर से कायम करने का काम राजपूत राजा राणा सांगा ने किया था. उस समय इतने बड़े क्षेत्र वाला दूसरा हिंदू सम्राज्य दक्षिण में विजयनगर सम्राज्य ही हुआ करता था. दिल्ली की सल्तनत पे तब सुल्तान इब्राहिम लोदी काबिज था, जिसको खातौली व बाड़ी के युद्ध में राणा सांगा ने 2 बार परास्त किया और गुजरात के सुल्तान को भी हराते हुए मेवाड़ की तरफ बढ़ने से रोक दिया था.

यही नहीं बाबर को भी खानवा के युद्ध में राणा सांगा ने बुरी तरह से हराते हुए बाबर से बयाना का दुर्ग भी जीत लिया था. इस प्रकार राणा सांगा ने भारतीय इतिहास पर राजपूती गौरव की एक और अमिट छाप छोड़ी थी. 

राजपूत शासक राणा सांगा 16वी शताब्दी के सबसे शक्तिशाली शासक थे, इनके शरीर पर 80 घाव थे, जिसमें इनकी आँख भी घायल हो चुकी थी, फिर भी इन्होने युद्ध के मैदान में डटे रहकर जीत दर्ज की थी. इसके बाद राजपूत राजा राणा सांगा को हिंदुपत जैसी गौरवशाली उपाधि भी दी गयी थी. भारतीय इतिहास में इनकी गिनती महानायक तथा शूरवीर राजा के रूप में की जाती हैं.

बयाना के युद्ध के पश्चात् 17 मार्च,1527 ई. में खानवा के मैैैदान में राणा सांगा जब युद्ध लड़ते हुए घायल हो गए, पर कछवाह वंश के पृथ्वीराज कछवाह नेे उन्हें किसी तरह वहां से बाहर निकलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई तथा पृथ्वीराज कछवाह ही राणा सांगा को घायल अवस्था में काल्पी ( मेवाड़ ) नामक स्थान पर पहुँचाने में बहुत मदद दी गई, लेेेकिन असंंतुुष्ट सरदारों ने इसी स्थान पर राणा सांगा को जहर दे दिया. 

ऐसी दुर्गम अवस्था में ही राणा सांगा पुनः बसवा आए जहाँ राणा सांगा की 30 जनवरी,1528 को मृत्यु हो गयी, लेकिन राणा सांगा का विधि विधान से अन्तिम संस्कार माण्डलगढ (भीलवाड़ा) में किया गया. 

राणा सांगा एक अदम्य साहसी शूरवीर योद्धा थे. एक भुजा, एक आँख, एक टांग खोने व अनगिनत ज़ख्मों के बावजूद उन्होंने कभी अपना महान पराक्रम नहीं खोया. सुलतान मोहम्मद शाह माण्डु ने युद्ध में हराने व बन्दी बनाये जाने के बाद भी उन्हें उनका राज्य पुनः उदारता के साथ सौंप दिया, यह राणा सांगा की बहादुरी का ही प्रभाव था जिसने उसको हैरान कर दिया था.

खानवा की लड़ाई में राणा जी को लगभग 80 घाव लगे थे, अतः राणा सांगा को सैनिकों का भग्नावशेष भी कहा जाता है. बाबर ने भी अपनी आत्मकथा मैं लिखा था कि राणा सांगा अपनी वीरता और तलवार के बल पर अत्यधिक शक्तिशाली हो गया था. वास्तव में राणा सांगा का राज्य चित्तौड़ में था. मगर मांडू के सुल्तानों के राज्य के पतन के कारण उसने बहुत-से स्थानों पर अधिकार जमा लिया था. उसका राज्य 10 करोड़ की आमदनी का था, उसकी सेना में एक लाख सवार थे, उसके साथ 7 राजा और 104 छोटे सरदार थे. यदि राणा सांगा के तीन उत्तराधिकारी भी वैसे ही वीर और योग्य होते तो मुगलों का राज्य कभी हिंदुस्तान में जमने न पाता. 

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