शरद पवार महाराष्ट्र की राजनीती के पितामह माने जाते है. जीवन के 8 दशक पार कर चुके शरद पंवार आज भी मराठा राजनीती के चाणक्य है. न केवल महाराष्ट्र अपितु शरद पवार देश की राजनीति में भी समय समय पर अपनी भूमिका का लोहा मनवाते रहे है.
सन 1960 से सक्रिय राजनीती में भाग लेते हुए, 1999 में इंडियन नेशनल कांग्रेस से अलग होकर शरद पंवार ने अपनी अलग पार्टी एन सी पी का गठन किया, जिसके वह लगभग 24 साल तक अध्यक्ष रहे.
सन 2023 में अचानक एन सी पी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देकर उन्होंने सभी को हैरान कर दिया.
उन्होंने कहा कि मैंने एक लंबे समय तक पार्टी का नेतृत्व किया है और अब मैं उम्र के उस पड़ाव पर हूं, जहां से मुझे लगता है कि अब इस दायित्व से मुझे मुक्त हो जाना चाहिए.
इसके बाद जुलाई 2023 में जब एनसीपी की मुख्य धुरी माने जाने वाले अजीत पवार ने बीजेपी ज्वाइन की तो वह शरद पवार के लिए बड़ा झटका था, किन्तु शरद ने तब भी दृढ़ता दिखाते हुए कहा था कि वह पार्टी को फिर से मजबूत करेंगे और दमदार वापसी करेंगे.
2023 में जब अजित पवार ने शरद पवार से बगावत करते हुए एनसीपी के विधायकों के बड़े धड़े को इकठ्ठा करके, उद्धव ठाकरे की शिवसेना में शिंदे की तरह पार्टी पर कब्ज़ा कर लिया. एनसीपी के विधायकों को लेकर अजित पवार महाराष्ट्र की तत्कालीन शिंदे सरकार में शामिल हो गए थे. इसके बाद अजित ने पार्टी पर अधिकार का दावा करते हुए अपने गुट को असली एनसीपी बताया था, जिस पर निर्णय देते हुए चुनाव आयोग ने फ़रवरी 2024 में एनसीपी के अजित पवार गुट को असली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी माना था. जिसके अनुसार अजित पवार को ही एनसीपी का नाम और चुनाव चिह्न दिया गया था.
इसके बाद शरद पवार गुट को एक नया नाम मिला जब चुनाव आयोग ने शरद पवार गुट को राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी - शरदचंद्र पवार नाम दिया. शरद पवार गुट ने अपने लिए चुनाव चिह्न बरगद का पेड़ और उगता सूरज की भी मांग करी थी जिस पर चुनाव आयोग ने अभी निर्णय नहीं लिया है. क्योंकि पवार गुट के नेतृत्व वाले एनसीपी गुट ने प्रतिद्वंद्वी अजित पवार गुट को असली पार्टी के रूप में मान्यता देने और उसे घड़ी चुनाव चिह्न आवंटित करने के निर्वाचन आयोग के आदेश को चेलेंज करते हुए सुप्रीम कोर्ट जाने का निर्णय लिया था.
2024 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में जब शरद पंवार ने कांग्रेस और शिव सेना उद्धव ठाकरे के साथ महा विकास अघाड़ी गठबंधन में चुनाव लड़ा तो एक बड़ी हार का सामना करना पड़ा. इन चुनावों में शरद पवार की पार्टी महज 10 विधान सभा सीटों पर सिमटकर रह गयी.
लेकिन अपने महान व्यक्तित्व का परिचय देते हुए शरद पवार ने इस हार को स्वीकार करते हुए, जनता के जनादेश का सम्मान करने की बात कही. साथ ही शरद पवार ने फिर से ग्राउंड पर लोगो के बीच जाने की बात कही. हार के प्रमुख कारणों में शरद पवार ने लड़की बहन योजना, धार्मिक ध्रुवीकरण और सरकारी संसाधनों का दुरूपयोग बताया.