jauhar jismein rani padmini ke saath hajaroon kshatraniyon ne kiya tha aatmdaah

जौहर जिसमें रानी पद्मिनी के साथ हजारों क्षत्राणियों ने किया था आत्मदाह

भारतीय इतिहास में हिंदुस्तानी नारियों की वीरता के अनेको किस्से है जिनमें जौहर की गाथाएं भी भरी पड़ी हैं. ऐसा ही एक जौहर हुआ था, चौदहवीं शताब्दी की शुरुआत में, जब दिल्ली की सल्तनत पर अलाउद्दीन खिलजी का कब्जा था. 

ऐसा कहा जाता है कि इस दौरान जब खिलजी ने राजस्थान के चित्तौड़गढ़ किले पर जीत हासिल की तो रानी पद्मिनी ने हजारों क्षत्राणियों के साथ जौहर कुंड में छलांग लगाकर आत्मदाह कर लिया था. आज भी चित्तौड़गढ़ दुर्ग में वह जौहर कुंड उपस्थित है. 
 
सन 1303 में 26 अगस्त की वो तारीख थी, जब रानी पद्मिनी ने हजारों क्षत्राणियों के साथ जौहर की आग को गले लगाया था. मलिक मोहम्मद जायसी ने 1540 में अपनी पुस्तक पद्मावत में इसका उल्लेख किया है. इसके अलावा कई अन्य किताबों में भी रानी पद्मिनी के उस जौहर का जिक्र देखने को मिलता है.

रानी पद्मिनी का मूल नाम पद्मावती था, वह सिंहलद्वीप के राजा की पुत्री थी. राजा रतनसिंह से विवाह के बाद वह चित्तौड़गढ़ की रानी बनी थी. रानी पद्मिनी बेहद खूबसूरत थीं, उनकी खूबसूरती के किस्से सुनकर अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़गढ़ पर चढ़ाई की थी, ताकि वह रानी पद्मिनी को पा सके. 

हालांकि इतिहासकारों में इस तथ्य को लेकर मतभेद भी हैं. इतिहासकार डॉ. गोपीनाथ शर्मा के मुताबिक खिलजी के आक्रमण का प्रमुख कारण रानी पद्मिनी नहीं, बल्कि चित्तौड़गढ़ का किला था, क्योंकि इस किले की व्यापारिक महत्ता बहुत अधिक थी. गुजरात, मालवा, मध्य प्रदेश, सिंध आदि के रास्ते चित्तौड़गढ़ से ही होकर जाते थे.

चाचा जलालुद्दीन खिलजी की हत्या हो जाने के बाद, अलाउद्दीन खिलजी ने दिल्ली की सल्तनत संभाली थी. हालांकि उसका शासनकाल चुनौतियों से भरा रहा, क्योंकि हिंदू और राजपूत शासक लगातार विद्रोह कर रहे थे. ऐसे में खिलजी ने राजपूत शासकों का हराने करने के लिए चित्तौड़गढ़ का रुख किया था.

अलाउद्दीन खिलजी के पास एक बहुत बड़ी सेना थी. वह जब अपनी सेना लेकर दिल्ली से चला, तो उसे भी इस बात का अंदाजा नहीं था कि चित्तौड़गढ़ में इतना भीषण संघर्ष करना होगा. खिलजी की सेना चाहकर भी किले में दाखिल नहीं हो सकी. ऐसे में सेना ने किले के बाहर ही डेरा डाल लिया और आवाजाही के रास्ते को रोक लिया. कहा जाता है कि अलाउद्दीन खिलजी लगातार छह माह तक चित्तौड़गढ़ किले के बहार डेरा डाले रहा था. इस दौरान न तो खाने-पीने की कोई चीज बाहर से किले में आ सकती थी और न ही कोई बाहर जा सकता था.

यूँ ही समय बीतता जा रहा था, तो किले के अंदर रसद कम हो रही थी. ऐसे में प्रजा की रक्षा के लिए अंततः राजा रतन सिंह ने युद्ध का ऐलान कर दिया और भीषण युद्ध हुआ, जिसमें राजा रतन सिंह ने बहादुरी के साथ खिलजी का मुकाबला किया, लेकिन उसकी भारी भरकम सेना के आगे राजपूत सेना जीत नहीं सकी. 

इस स्थिति में खिलजी चित्तौड़गढ़ किले में दाखिल होता, उससे पहले ही रानी पद्मिनी ने हजारों क्षत्राणियों के साथ जौहर कर लिया था. युद्ध में हारने के बाद राजपूत रानी पद्मावती और क्षत्राणी स्त्रियों को अपने प्राणो से अधिक अपनी मर्यादा प्रिय थी, जिसका मान रखने के लिए उन्होंने जौहर कर लिया था.   

धन्य है ऐसी राजपूत वीरांगना स्त्रियाँ.  

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