होलिका दहन पर्व भक्त प्रहलाद की भक्ति की याद में मनाया जाता है. भगवान श्रीकृष्ण के कालखंड में इस त्योहार से रंग जुड़ गया और इसे उत्सव की तरह मनाया जाने लगा.
होलिका दहन की कथा : होलिका दहन की कथा के अनुसार, एक बार दैत्य राज हिरण्यकशिपु विजय प्राप्ति के लिए तपस्या कर रहा था. उसको ऐसा करते देखकर देवताओं ने इसे अवसर जानकार हिरण्यकशिपु के राज्य पर आधिपत्य कर लिया. हिरण्यकशिपु की गर्भवती पत्नी को ब्रह्मर्षि नारद अपने आश्रम में ले आए और उन्हें प्रतिदिन धर्म और हरि महिमा के विषय में बताने लगे. ब्रह्मऋषि द्वारा दिया गया यह ज्ञान महारानी कयाधु के गर्भ में पल रहे पुत्र प्रहलाद को भी प्राप्त हुआ.
दैत्य राज हिरण्यकशिपु ने बाद में ब्रह्मा जी के वरदान से तीनों लोकों पर विजय प्राप्त कर ली. महारानी कयाधु भी उसके पास आ गई और फिर प्रहलाद का जन्म हुआ. जब प्रह्लाद कुछ बड़े हुए तो वह भगवान श्री हरि विष्णु की भक्ति करने लगे. उन्हें ऐसा करते देखकर उनके पिता हिरण्यकशिपु क्रोधित हो गए. हिरण्यकशिपु ने अपने गुरु को बुलाकर ऐसा कोई उपाय पूछा जिससे कि प्रहलाद विष्णु जी का नाम रटना छोड़ द